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द गर्ल इन रूम 105

'ये मेरा बर्थडे है, आई होप तुम्हें याद होगा।'

मैं केशव के रिप्लाई का वेट करने लगा। इस दौरान मैंने बेड को जमा दिया। मैंने जारा को खिसकाते हुए उसकी बेडशीट भी बदल दी। उनकी अलमारी में हमेशा फ्रेश बेडशीट्स रखी होती थीं। मैंने पुरानी बेडशीड को फ़ोल्ड करके अपने बैकपैक में डाल दिया। मैंने फिर फोन चेक किया। अब मेरे मैसेजिस के सामने ब्लू टिक्स थीं और केशव ऑनलाइन था। मुझे पता था। मुझे अच्छी तरह मालूम था कि यह चूतिया आशिक़ ज़ारा के बर्थडे वाली रात

को सोएगा नहीं। मैं उसे मैसेजिस भेजता चला गया- मैं बस सरप्राइज्ड थी कि तुमने मुझे विश नहीं किया।'

एनीवे। पता नहीं मैं आज क्यों तुम्हारे बारे में सोच रही थी।'

आई गेस, तुम बिज़ी हो।' उसने कोई रिप्लाई नहीं दिया। मैंने समय देखा। मुझे बीस मिनट बाद निकलना था, इसलिए मैंने कुछ और

मैसेज भेज दिए—

'आर यू देयर?" 'आई मिस यू।'

एक मिनट बाद मैंने देखा कि केशव कुछ टाइप कर रहा है।

'बाऊ, रियली ?' उसने जवाब दिया। 'बहुत अच्छे, तो मछली कांटे में फंस रही है, मैंने खुद से कहा और दस मिनट बाद वह जारा को विश करने उसके रूम पर आ रहा था।

अब चूंकि पालतू कुत्ता यहीं आ रहा था, इसलिए यहां से निकल जाने का यही ठीक समय था। मैंने ज़ारा का फोन उठाया और उसे स्विच ऑफ कर दिया। मैंने उसे फिर स्विच ऑन किया तो इस बार उसने पासकोड मांगा। अब कोई भी उसके अंगूठे का इस्तेमाल करके उसका फोन नहीं खोल सकता था। मैंने उसे फिर से चार्ज पर लगा दिया। मैंने सेनिटाइज़र और टिशूज से वहां पर मेरे होने के तमाम निशान मिटा दिए और इस्तेमाल किए गए टिशूज़ को अपने बैकपैक में डाल दिया। अब मैंने खिड़की खोली। दिल्ली की ठंडी हवा ने मेरे चेहरे को छुआ। मैंने समय देखा। 3 बजकर 04 मिनट हो रहे थे। मैं जेम्स बॉन्ड हूं, मैंने खुद से कहा और आम के पेड़ की डाल पकड़कर

वहां से बाहर निकल गया। मैं आउटर रिंग रोड पर चला आया। मैं इतना बेवकूफ़ नहीं था कि कोई उबर टैक्सी लेता और अपने पीछे कोई सुराग छोड़ जाता। मैं ऑटो का इंतज़ार करता हुआ अपनी हथेलियों को रगड़ता रहा। दस मिनट बाद ऑटो

मिल गया।

'एयरपोर्ट, 'मैंने कहा। 'अभी हम पैसेंजर्स नहीं ले रहे हैं, पर जा रहे हैं. ' उसने कहा। मैंने दो हज़ार रुपए के पांच पर्पल नोट निकाले और ऑटो वाले को दिखाते हुए कहा, 'अब क्या ख्याल है?"

'बैठ जाइए, घर जाकर भी मैं क्या करूंगा ?' उसने कहा।

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